उत्तराखंड में कई अति प्राचीन शिव मंदिर हैं जिनके बारे में मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना यहां आकर पूरी होती हैं इन पौराणिक शिव मंदिरों में से कई का संबंध सीधे महाभारत काल से जुड़ा हुआ है वैसे भी उत्तराखंड को शिवजी का ससुराल कहां जाता है पौराणिक मान्यताओं में उत्तराखंड में कई देवी-देवताओं का निवास स्थल भी बताया जाता है ये ही वजह है कि इसे देवभूमि भी कहा जाता है यानी देवताओं की सबसे पवित्र भूमि आइए आपको उत्तराखंड के सबसे प्राचीन और चमत्कारिक शिव मंदिरों की धार्मिक यात्रा पर ले कर चलते हैं
बैजनाथ मंदिर
बैजनाथ बैजनाथ मंदिर गोमती नदी के पावन तट पर बसा हुआ है यह उत्तराखंड के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक मंदिर है उत्तराखंड की कई लोक गाथाओं में बैजनाथ मंदिर का भी जिक्र आता है इस शिव मंदिर के बारे में मान्यता ये भी है कि यहां भगवान बैजनाथ से मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1204 ईस्वी में हुआ था मंदिर की वास्तुकला और दीवारों की नक्काशी बेहद आकर्षक है मंदिर के अदंर आपको शिलालेख भी दिखाई देंगे

केदारनाथ उत्तराखंड का केदारनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है यह मंदिर बर्फीली पहाड़ियों पर स्थित है केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में भी शामिल है सर्दियों में इस मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और उसके बाद गर्मियों में भक्त मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं हर साल देशभर से श्रद्धालु केदारनाथ मंदिर पहुंचते हैं और बाबा के दर्शन करते है

रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव का यह मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले में है यह मंदिर पंच केदार में शामिल है मंदिर समुद्र तल से 2220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है इस मंदिर के भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है जबकि शिव के पूरे धड़ की पूजा पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाल) में की जाती है

तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग यह भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है मंदिर रूद्रप्रयाग जिले में है यह प्राचीन मंदिर भी पंच केदार में शामिल है पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर में ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने पूजा की थी और मंदिर का निर्माण करवाया था

बालेश्वर मंदिर चंपावत यह भी भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में शामिल है मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी से ही इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है इस मंदिर में कई सारे शिवलिंग मौजूद हैं इस मंदिर में मौजूद शिलालेख के मुताबिक इसका निर्माण 1272 के दौरान चंद वंश द्वारा किया गया था

